न किसी की आँख का नूर हूँ - Na Kisi Ki Aankh Ka Noor Hoon (Md.Rafi, Lal Qilla)

Movie/Album: लाल किला (1960)
Music By: एस.एन.त्रिपाठी
Lyrics By: मुज़्तर ख़ैराबादी
Performed By: मो.रफ़ी

न किसी की आँख का नूर हूँ, न किसी के दिल का क़रार हूँ
जो किसी के काम न आ सके, मैं वो एक मुश्त-ए-ग़ुबार हूँ

न तो मैं किसी का हबीब हूँ, न तो मैं किसी का रक़ीब हूँ
जो बिगड़ गया वो नसीब हूँ, जो उजड़ गया वो दयार हूँ
न किसी की आँख का...

मेरा रंग रूप बिगड़ गया, मेरा यार मुझसे बिछड़ गया
जो चमन ख़िज़ां से उजड़ गया, मैं उसी की फ़स्ल-ए-बहार हूँ
न किसी की आँख का...

पए-फ़ातेहा कोई आये क्यूँ, कोई चार फूल चढ़ाये क्यूँ
कोई आ के शम्मा जलाये क्यूँ, मैं वो बेकसी का मज़ार हूँ
न किसी की आँख का...

42 comments :

  1. शायद यही एक शेर छूट गया था -

    मैं नहीं हूँ नग़्मा-ए-जाँफ़िशाँ मुझे सुन के कोई करेगा क्या
    मैं बड़े बरोग की हूँ सदा मैं बड़े दुख की पुकार हूँ

    और आपने जो आखरी शेर लिखा है उसमें मेरे विचारसे पहला शब्द 'पढे' होना चाहिये न कि 'पए' - फिर उस शेर का मतलब साफ उभरकर आता है...

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    1. पए फातेहा.... सही शब्द है
      'पए' फारसी का शब्द है जिसका मतलब 'लिए' होता है

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    2. Thank you all for the transalagion of words

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    3. पए फ़ातेहा...is correct word.

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    4. पए सही लफ़्ज़ है जिसका माअना है "पे" यानी "पर" यानी फ़ातिहा पर, यानी मेरी क़ब्र पर आकर क्यों कोई फ़ातिहा पड़े।

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  2. फिल्म में यह आखिरी शेर नहीं है.. शायद मेरे पास पूरा गाना न हो.. अगर आपके पास है तो भेज दें..

    आखिरी शेर में "पए" ही है. मैंने फिर से सुना.. आप एक बार फिर से सुने और बातें अगर यह गलत हो तो..
    धन्यवाद!

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  3. 'फ़ातेहा पए' सही है दरअसल गाने की लय के हिसाब से 'फ़ातेहा पे' की जगह इस तरीक़े से लिखा गया है

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  4. I have one more stanza as under -
    Main Kahaan Rahoon Main Khahan Basoon

    Na Yeh Mujhse Khush Na Woh Mujhse Khush

    Main Zameen Ki Peeth Ka Bojh Hoon

    Main Falak Ke Dil Ka Gubaar Hoon

    Na Kisi Ki Aankh Ka Noor Hoon

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  5. The great lines....
    It's really brings tear in eyes....

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  6. Meaning of these urdu words
    Wonderfully sung by rafi saab

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  7. बिल्कुल मुमकिन है कि इतना दर्द भी  किसी के सीने में हो, होता भी है...लेकिन उसे इतनी ही गहराई के साथ बयान भी  किया जा सके यह बेहध मुश्किल काम है, जिसे इस गजल मे कर दिखाया है...। इस गजल को सुनते हुए उस दर्द को उतनी ही शिद्दत से महसूस किया जा सकता है ...

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    1. Ykin nhi hota ki esi gehrai ki bato ko smjhne wale abhi bhi maujud he.

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  8. wonderfull the song make me cry often.......always make me feel good.love u rafi sir

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  9. Bhai logo kabhi ye ghazal jagjit singh ji ki awaz me suno. Sangeet ke naye darwaze khul jayenge...

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  10. This is actually written by Muztar Khairabadi ( Grand father of Javed Akhtar ) and used in the film Lal Quila (1960).

    न मैं ‘मुज़्तर’ उन का हबीब हूँ न मैं ‘मुज़्तर’ उन का रक़ीब हूँ
    जो बिगड़ गया वो नसीब हूँ जो उजड़ गया वो दयार हूँ

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  11. Lyrics by Bahadur Shah Jafar ll

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  12. The original ghazal by Muztar Kairabadi

    न किसी की आँख का नूर हूँ न किसी के दिल का क़रार हूँ
    कसी काम में जो न आ सके मैं वो एक मुश्त-ए-ग़ुबार हूँ
    न दवा-ए-दर्द-ए-जिगर हूँ मैं न किसी की मीठी नज़र हूँ मैं
    न इधर हूँ मैं न उधर हूँ मैं न शकेब हूँ न क़रार हूँ
    मिरा वक़्त मुझ से बिछड़ गया मिरा रंग-रूप बिगड़ गया
    जो ख़िज़ाँ से बाग़ उजड़ गया मैं उसी की फ़स्ल-ए-बहार हूँ
    पए फ़ातिहा कोई आए क्यूँ कोई चार फूल चढ़ाए क्यूँ
    कोई आ के शम्अ' जलाए क्यूँ मैं वो बेकसी का मज़ार हूँ
    न मैं लाग हूँ न लगाव हूँ न सुहाग हूँ न सुभाव हूँ
    जो बिगड़ गया वो बनाव हूँ जो नहीं रहा वो सिंगार हूँ
    मैं नहीं हूँ नग़्मा-ए-जाँ-फ़ज़ा मुझे सुन के कोई करेगा क्या
    मैं बड़े बिरोग की हूँ सदा मैं बड़े दुखी की पुकार हूँ
    न मैं 'मुज़्तर' उन का हबीब हूँ न मैं 'मुज़्तर' उन का रक़ीब हूँ
    जो बिगड़ गया वो नसीब हूँ जो उजड़ गया वो दयार हूँ

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    1. मुज़्तर ख़ैराबादी की ग़ज़ल इसे बार बार कहा जा रहा है; मगर मैंने तो इसे बहादुर शाह ज़फ़र की ग़ज़ल के तौर पर बरसों से जाना है.. क्या मेरी जानकारी ग़लत है?

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    2. Wonderful ghajal, and thanks for information

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  13. Moments that we cherish taking a peek at what was in one's mind -
    whether Zafar or Vyas or Muztar - takes you away from the blemishes of this world to the beauty of "their world" - the world beyond!

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  14. We know that this was written by Mughal Emperor Bahadur Shah Zafar who also wrote "Lagta Nahin hai Dil mera ujre dayar main"

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  15. It was indeed penned by His Majesty Bahadur Shah Zafar later on many verses were added by lyricists

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    1. Ibe believe this ghazal is i deed written by Bahadur Shah Zafar.Some changes here and there may have been done by Muztar Khairabadi later on .

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    2. I think you are right dear Arul Francis. I guess you are Tamilan who likes and understands ghazals. I am a great fan of Jagjit Singhji. Besides I do listen myriad ghazals.

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  16. beautifully scripted by bahadur shah zafar

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  17. aisa lagta hai dukh ki dhara me sabhi mahan shayaron ke aansu shamil hai jise rafi sahab ne sabke seene me sada ke liye utaar diya hai.

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  18. This is Mujtar Khairabadi's gazl. Wrongly attributed to Bahadur Shah Zafar 1. Please chech itout here:
    https://www.rekhta.org/ghazals/na-kisii-kii-aankh-kaa-nuur-huun-na-kisii-ke-dil-kaa-qaraar-huun-muztar-khairabadi-ghazals-1?lang=ur

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  19. जिन्दगी हाथ से फिसल गई पर ये शायरी दिलो दिमाग में रह गई।

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  20. Yes,it was written by last mughal king Bahadur Shah Zafar who was exiled to Burma(myanmar)after the great revolt of 1857.he had the most tragic life.

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  21. रफ़ी जी रफ़ी थे, वो हर महज़ब धर्म के करीब थे
    सुना गए सभी महजबो के गीत वो बन्दे अजीब थे

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  22. It was indeed penned by last emperor Bahadur Shah Zafar as my grand father used to sing it. Later it might have been changed or some lines added by someone.

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  23. जीवन के अंतिम क्षणों में जिंदगी से निराश इन्सान के दिल से इस से बेहतर अल्फा़ज नहीं निकल सकते हैं। बहादुर शाह ज़फर की कलम बेमिसाल है।

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    1. बिल्कुल सही फ़रमाया आपने

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  24. جی بلکل صحی فرمایا اپنے

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  25. Why this type of controversy regarding who is the original poet. Guys whosoever be the poet, just try to understand the emotions.

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  26. This gazal is written by hon.bahadur Shah jafar..he became king of India in Delhi in the revolt of 1857.
    But revolt failed and he was kept in jail in rangun (now Myanmar) he spent his rest of the life there ..where he wrote this type of gazals .he has written many many Urdu gazals .

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  27. न किसी की आँख का नूर हूँ न किसी के दिल का क़रार हूँ

    कसी काम में जो न आ सके मैं वो एक मुश्त-ए-ग़ुबार हूँ

    न दवा-ए-दर्द-ए-जिगर हूँ मैं न किसी की मीठी नज़र हूँ मैं

    न इधर हूँ मैं न उधर हूँ मैं न शकेब हूँ न क़रार हूँ

    मिरा वक़्त मुझ से बिछड़ गया मिरा रंग-रूप बिगड़ गया

    जो ख़िज़ाँ से बाग़ उजड़ गया मैं उसी की फ़स्ल-ए-बहार हूँ

    पए फ़ातिहा कोई आए क्यूँ कोई चार फूल चढ़ाए क्यूँ

    कोई आ के शम्अ' जलाए क्यूँ मैं वो बेकसी का मज़ार हूँ

    न मैं लाग हूँ न लगाव हूँ न सुहाग हूँ न सुभाव हूँ

    जो बिगड़ गया वो बनाव हूँ जो नहीं रहा वो सिंगार हूँ

    मैं नहीं हूँ नग़्मा-ए-जाँ-फ़ज़ा मुझे सुन के कोई करेगा क्या

    मैं बड़े बिरोग की हूँ सदा मैं बड़े दुखी की पुकार हूँ

    न मैं 'मुज़्तर' उन का हबीब हूँ न मैं 'मुज़्तर' उन का रक़ीब हूँ

    जो बिगड़ गया वो नसीब हूँ जो उजड़ गया वो दयार हूँ
    ये है पूरी ग़ज़ल मुज़्तर ख़ैराबादी की

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  28. Waah....Waah..
    Hum bhi koshish karna chahte h kuch...Naye h iss dariya main..toh Suniye... Kaisi lagi btaiyega.
    Na kisi ka noor hu na kisi ke dil ka karar hu....
    Na koi mujhe chahta hai na koi mujhe pukarta hai...
    Na main kisi ki fariyad main hu na kisi ki yaad me hu....
    Na kisi ke sath hu na koi mere sath hai....Na main kisi ka aashiq na meri koi maashuka........
    Na main kisika ka baap na main kisi ka beta...chor diya Maine sabko peeche.....ab to na parchayi meri na rooh meri hai....Azad hu main...
    Na main kisi ka...na koi mera hai.....
    Bas main hi main hu...na mujhsa mera koi deewana hai...

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