Movie/Album: मिर्ज़ा ग़ालिब (टी वी सीरियल) (1988), ग़ालिबनामा (2012)
Music By: जगजीत सिंह, गुलाम अली
Lyrics By: मिर्ज़ा ग़ालिब
Performed By: चित्रा सिंह, गुलाम अली
चित्रा सिंह
किसी को दे के दिल कोई
नवा संज-ए-फ़ुग़ाँ क्यूँ हो
न हो जब दिल ही सीने में
तो फिर मुँह में ज़ुबाँ क्यूँ हो
वफ़ा कैसी, कहाँ का इश्क़
जब सर फोड़ना ठहरा
तो फिर, ऐ संग-दिल
तेरा ही संग-ए-आस्ताँ क्यूँ हो
यही है आज़माना, तो
सताना किसको कहते हैं
अदू के हो लिये जब तुम
तो मेरा इम्तिहाँ क्यूँ हो
क़फ़स में, मुझसे रूदाद-ए-चमन
कहते न डर, हमदम
गिरी है जिसपे कल बिजली
वो मेरा आशियाँ क्यूँ हो
ग़ुलाम अली
किसी को दे के दिल कोई नवा संज-ए-फ़ुग़ाँ क्यूँ हो
न हो जब दिल ही सीने में तो फिर मुँह में ज़ुबाँ क्यूँ हो
वो अपनी खू न छोड़ेंगे, हम अपनी वज़ा क्यूँ बदले
सुबुक-सर बन के क्या पूछें कि हम से सरगिराँ क्यूँ हो
किसी को दे के...
किया ग़म-ख़्वार ने रुसवा, लगे आग इस मुहब्बत को
न लावे ताब जो ग़म की वो मेरा राज़-दाँ क्यूँ हो
किसी को दे के...
ये कह सकते हो हम दिल में नहीँ है, पर ये बतलाओ
कि जब दिल में तुम्हीं-तुम हो तो आँखों से निहाँ क्यूँ हो
न हो जब दिल ही...
कहा तुम ने कि क्यूँ हो ग़ैर के मिलने में रुसवाई
बजा कहते हो, सच कहते हो, फिर कहिओ कि हाँ, क्यूँ हो
किसी को दे के...
निकाला चाहता है काम क्या तानों से तू "ग़ालिब"
तेरे बे-मेहर कहने से वो तुझ पर मेहरबाँ क्यूँ हो
किसी को दे के...
Music By: जगजीत सिंह, गुलाम अली
Lyrics By: मिर्ज़ा ग़ालिब
Performed By: चित्रा सिंह, गुलाम अली
चित्रा सिंह
किसी को दे के दिल कोई
नवा संज-ए-फ़ुग़ाँ क्यूँ हो
न हो जब दिल ही सीने में
तो फिर मुँह में ज़ुबाँ क्यूँ हो
वफ़ा कैसी, कहाँ का इश्क़
जब सर फोड़ना ठहरा
तो फिर, ऐ संग-दिल
तेरा ही संग-ए-आस्ताँ क्यूँ हो
यही है आज़माना, तो
सताना किसको कहते हैं
अदू के हो लिये जब तुम
तो मेरा इम्तिहाँ क्यूँ हो
क़फ़स में, मुझसे रूदाद-ए-चमन
कहते न डर, हमदम
गिरी है जिसपे कल बिजली
वो मेरा आशियाँ क्यूँ हो
ग़ुलाम अली
किसी को दे के दिल कोई नवा संज-ए-फ़ुग़ाँ क्यूँ हो
न हो जब दिल ही सीने में तो फिर मुँह में ज़ुबाँ क्यूँ हो
वो अपनी खू न छोड़ेंगे, हम अपनी वज़ा क्यूँ बदले
सुबुक-सर बन के क्या पूछें कि हम से सरगिराँ क्यूँ हो
किसी को दे के...
किया ग़म-ख़्वार ने रुसवा, लगे आग इस मुहब्बत को
न लावे ताब जो ग़म की वो मेरा राज़-दाँ क्यूँ हो
किसी को दे के...
ये कह सकते हो हम दिल में नहीँ है, पर ये बतलाओ
कि जब दिल में तुम्हीं-तुम हो तो आँखों से निहाँ क्यूँ हो
न हो जब दिल ही...
कहा तुम ने कि क्यूँ हो ग़ैर के मिलने में रुसवाई
बजा कहते हो, सच कहते हो, फिर कहिओ कि हाँ, क्यूँ हो
किसी को दे के...
निकाला चाहता है काम क्या तानों से तू "ग़ालिब"
तेरे बे-मेहर कहने से वो तुझ पर मेहरबाँ क्यूँ हो
किसी को दे के...
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