Music By: नियाज़ अहमद
Lyrics By: फरहत शहज़ाद
Performed By: हरिहरन, मेहदी हसन
क्या टूटा है अन्दर-अन्दर क्यूॅं चेहरा कुम्हलाया है
तन्हा-तन्हा रोने वालों कौन तुम्हें याद आया है
क्या टूटा है अन्दर-अन्दर...
चुपके-चुपके सुलग रहे थे याद में उनकी दीवाने
इक तारे ने टूट के यारों क्या उनको समझाया है
क्या टूटा है अन्दर-अन्दर...
रंग बिरंगी इस महफ़िल में तुम क्यूॅं इतने चुप-चुप हो
भूल भी जाओ पागल लोगों क्या खोया क्या पाया है
क्या टूटा है अन्दर-अन्दर...
शेर कहाॅं है ख़ून है दिल का जो लफ़्ज़ों में बिखरा है
दिल के ज़ख़्म जला कर हमने महफ़िल को गरमाया है
क्या टूटा है अन्दर-अन्दर...
अब 'शहज़ाद' ये झूठ न बोलो वो इतना बेदर्द नहीं
अपनी चाहत को भी परखो गर इल्ज़ाम लगाया है
क्या टूटा है अन्दर-अन्दर...
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