Music By: जॉली मुखर्जी, किशोर शर्मा
Lyrics By: इब्राहिम अश्क़
Performed By: हरिहरन
महफ़िल-ए-यारा में
दीवानों का आलम कुछ न पूछ
जाम हाथों में उठाए तो छलकना चाहिए
हाथों में अपने जाम नहीं है तो कुछ नहीं
हर शाम उसके नाम नहीं है तो कुछ नहीं
हाथों में अपने जाम...
मय-ख़ाना हो, शराब हो, साक़ी हो, और हम
पीने का इंतज़ाम नहीं है तो कुछ नहीं
हर शाम उसके नाम...
दुनिया बहुत हसीन है, मंज़ूर है मगर
लेकिन शराब आम नहीं है तो कुछ नहीं
हर शाम उसके नाम...
पीते नहीं हैं 'अश्क़' कभी मुफ़्त की शराब
वो चीज़ जिसका दाम नहीं है तो कुछ नहीं
हर शाम उसके नाम...
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