Music By: जॉली मुखर्जी
Lyrics By: ताहिर फ़राज़
Performed By: हरिहरन
ख़ुद को पढ़ता हूॅं छोड़ देता हूॅं
इक वरक रोज़ मोड़ देता हूॅं
ख़ुद को पढ़ता हूॅं...
इस क़दर ज़ख़्म है निग़ाहों में
रोज़ इक आइना तोड़ देता हूॅं
इक वरक...
काॅंपते होंठ भीगती पलकें
बात अधूरी ही छोड़ देता हूॅं
इक वरक...
रेत के घर बना-बना के 'फ़राज़'
जाने क्यूॅं ख़ुद ही तोड़ देता हूॅं
इक वरक...
No comments :
Post a Comment
यह वेबसाइट/गाना पसंद है? तो कुछ लिखें...