Movie/Album: आक्रमण (1975)
Music By: लक्ष्मीकांत प्यारेलाल
Lyrics By: आनंद बक्षी
Performed By: किशोर कुमार
फौजी गया जब गाँव में
पहन के रंग रूट, फुल बूट पाँव में
फौजी गया जब गाँव में...
पहले लोगों ने रखा था मेरा नाम निखट्टू
दो दिन में जग ऐसे घुमा, जैसे घुमे लट्टू, हो लट्टू
भरती हो कर करनैला करनैल सिंह बन बैठा
मेरा बापू साथ मेरे जरनैल सिंह बन बैठा
आते देखा मुझको तो सब करने लगे सलामी
आगे पीछे दौड़े चाचा-चाची मामा-मामी
यारों ने सामान उठा कर रखा अपने सर पे
दरवाज़े पर बैठे थे सब, जब मैं पहुँचा घर पे
कस कर पूरे ज़ोर से फिर मैंने सैल्यूट जो मारा
सबकी छुट्टी हो गयी फिर मैंने बूट से बूट जो मारा
फौजी गया जब गाँव में
घर के अंदर जा कर फिर जब मैंने खोला बक्सा
देख रहे थे सब यूँ जैसे देखे जंग का नक्शा
सबको था मालूम खुलेगी शाम को रम की बोतल
सब आ बैठे घर मेरे, घर मेरा बन गया होटल
बीच में बैठा था मैं, सब बैठे थे आजु-बाजु
इतने में बन्दुक चली भई गाँव में आए डाकू
उतर गयी थी सबकी, छुप गए सारे डर के मारे
मैं घर से बाहर निकला, सब मेरा नाम पुकारे
मार के लाठी ज़मीं पे जट ने, डाकुओं को ललकारा
वो थे चार, अकेला मैं, मैंने चारों को मारा
फौजी गया जब गाँव में...
छोड़ के अपने घोड़े डाकू, जान बचा कर भागे
मेरी वाह-वाह करते सुबह नींद से लोग जागे
मैं खेतों की सैर को निकला, मौसम था मस्ताना
रस्ते में वो मिली मेरा था, जिससे इश्क़ पुराना
खूब सुने और खूब सुनाये, किस्से अगले पिछले
निकला चाँद तो हम दोनों भी खेत से बाहर निकले
हाय हाय मच गया शोर सारे गाँव में
फौजी गया जब गाँव में...
Music By: लक्ष्मीकांत प्यारेलाल
Lyrics By: आनंद बक्षी
Performed By: किशोर कुमार
फौजी गया जब गाँव में
पहन के रंग रूट, फुल बूट पाँव में
फौजी गया जब गाँव में...
पहले लोगों ने रखा था मेरा नाम निखट्टू
दो दिन में जग ऐसे घुमा, जैसे घुमे लट्टू, हो लट्टू
भरती हो कर करनैला करनैल सिंह बन बैठा
मेरा बापू साथ मेरे जरनैल सिंह बन बैठा
आते देखा मुझको तो सब करने लगे सलामी
आगे पीछे दौड़े चाचा-चाची मामा-मामी
यारों ने सामान उठा कर रखा अपने सर पे
दरवाज़े पर बैठे थे सब, जब मैं पहुँचा घर पे
कस कर पूरे ज़ोर से फिर मैंने सैल्यूट जो मारा
सबकी छुट्टी हो गयी फिर मैंने बूट से बूट जो मारा
फौजी गया जब गाँव में
घर के अंदर जा कर फिर जब मैंने खोला बक्सा
देख रहे थे सब यूँ जैसे देखे जंग का नक्शा
सबको था मालूम खुलेगी शाम को रम की बोतल
सब आ बैठे घर मेरे, घर मेरा बन गया होटल
बीच में बैठा था मैं, सब बैठे थे आजु-बाजु
इतने में बन्दुक चली भई गाँव में आए डाकू
उतर गयी थी सबकी, छुप गए सारे डर के मारे
मैं घर से बाहर निकला, सब मेरा नाम पुकारे
मार के लाठी ज़मीं पे जट ने, डाकुओं को ललकारा
वो थे चार, अकेला मैं, मैंने चारों को मारा
फौजी गया जब गाँव में...
छोड़ के अपने घोड़े डाकू, जान बचा कर भागे
मेरी वाह-वाह करते सुबह नींद से लोग जागे
मैं खेतों की सैर को निकला, मौसम था मस्ताना
रस्ते में वो मिली मेरा था, जिससे इश्क़ पुराना
खूब सुने और खूब सुनाये, किस्से अगले पिछले
निकला चाँद तो हम दोनों भी खेत से बाहर निकले
हाय हाय मच गया शोर सारे गाँव में
फौजी गया जब गाँव में...
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