Movie/ Album: ग़ज़ल (1964)
Music By: मदन मोहन
Lyrics By: साहिर लुधियानवी
Performed By: मो. रफ़ी
ताज तेरे लिए मज़हर-ए-उल्फ़त ही सही
तुझको इस वादी-ए-रंगीं से अक़ीदत ही सही
मेरी महबूब कहीं और मिलाकर मुझसे
मेरी महबूब कहीं और...
अनगिनत लोगों ने दुनिया में मुहब्बत की है
कौन कहता है के सादिक़ न थे जज़्बे उनके
लेकिन उनके लिए तशहीर का सामान नहीं
क्यूँ के वो लोग भी अपनी ही तरह मुफ़लिस थे
मेरी महबूब कहीं और...
ये चमनज़ार, ये जमना का किनारा, ये महल
ये मुनक्कश दर-ओ-दीवार, ये मेहराब, ये ताक़
इक शहंशाह ने दौलत का सहारा लेकर
हम ग़रीबों की मुहब्बत का उड़ाया है मज़ाक
मेरी महबूब कहीं और...
Music By: मदन मोहन
Lyrics By: साहिर लुधियानवी
Performed By: मो. रफ़ी
ताज तेरे लिए मज़हर-ए-उल्फ़त ही सही
तुझको इस वादी-ए-रंगीं से अक़ीदत ही सही
मेरी महबूब कहीं और मिलाकर मुझसे
मेरी महबूब कहीं और...
अनगिनत लोगों ने दुनिया में मुहब्बत की है
कौन कहता है के सादिक़ न थे जज़्बे उनके
लेकिन उनके लिए तशहीर का सामान नहीं
क्यूँ के वो लोग भी अपनी ही तरह मुफ़लिस थे
मेरी महबूब कहीं और...
ये चमनज़ार, ये जमना का किनारा, ये महल
ये मुनक्कश दर-ओ-दीवार, ये मेहराब, ये ताक़
इक शहंशाह ने दौलत का सहारा लेकर
हम ग़रीबों की मुहब्बत का उड़ाया है मज़ाक
मेरी महबूब कहीं और...
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