Movie/Album: बागबान (2003)
Music By: आदेश श्रीवास्तव
Lyrics By: समीर
Performed By: ऋचा शर्मा, अमिताभ बच्चन
बाग को जनम देने वाला बागवान
परिवार को जनम देने वाला पिता
दोनों ही अपने खून-पसीने से
अपने पौधों को सींचते हैं
ना सिर्फ अपने पेड़ से
उसके साये से भी प्यार करते हैं
क्योंकि उसे उम्मीद है एक रोज़
जब वो ज़िन्दगी से थक जायेगा
यही साया उसके काम आयेगा
ओ धरती तरसे, अम्बर बरसे
रुत आये, रुत जाये हाय
हर मौसम की खुशबू चुन के
बागबाँ बाग सजाये
बागों के हर फूल को अपना समझे बागबाँ
हर घड़ी करे रखवाली
पत्ती-पत्ती डाली-डाली सींचे बागबाँ
बागबाँ रब है बागबाँ
ओ मधुबन की बहार ले आये
मौसम रीते-रीते हाय मौसम रीते-रीते
जनम-जनम की तृष्णा बुझ गई
बिरहा के क्षण बीते हाय बिरहा की क्षण बीते
फिर से सजाये, बिखरे अपने सपने बागबाँ
बागबाँ रब है...
ओ ऊँगली थाम के जिन बिरवों को
हमने दिखाई राह
मात-पिता की उनके मन में
तनिक नहीं परवाह
ओ अंसुअन भर नैनों से इनको देखे बागबाँ
बागबाँ रब है...
ओ किसने दुःख की अग्नि डाली
बंजर हो गए खेत
हरी-भरी जीवन बगिया से
उड़ने लगी है रेत हाय
क्या बोया था और क्या काटा सोचे बागबाँ
बागबाँ रब है...
ओ यही सोच के साँसें लिख दी
इन फूलन के नाम
इनकी छैयाँ-छैयाँ बीते
उम्र की ढलती शाम
गुंचे हरदम ही मुस्काये चाहे बागबाँ
हर घड़ी करे रखवाली...
वो सूरज है लायी जिसने
धूप आँगन-आँगन में
क्यों है अकेलेपन का अँधेरा
आज उसी के दामन में
क्या चाहा था और क्या पाया सोचे बागबाँ
बागबाँ रब है...
Music By: आदेश श्रीवास्तव
Lyrics By: समीर
Performed By: ऋचा शर्मा, अमिताभ बच्चन
बाग को जनम देने वाला बागवान
परिवार को जनम देने वाला पिता
दोनों ही अपने खून-पसीने से
अपने पौधों को सींचते हैं
ना सिर्फ अपने पेड़ से
उसके साये से भी प्यार करते हैं
क्योंकि उसे उम्मीद है एक रोज़
जब वो ज़िन्दगी से थक जायेगा
यही साया उसके काम आयेगा
ओ धरती तरसे, अम्बर बरसे
रुत आये, रुत जाये हाय
हर मौसम की खुशबू चुन के
बागबाँ बाग सजाये
बागों के हर फूल को अपना समझे बागबाँ
हर घड़ी करे रखवाली
पत्ती-पत्ती डाली-डाली सींचे बागबाँ
बागबाँ रब है बागबाँ
ओ मधुबन की बहार ले आये
मौसम रीते-रीते हाय मौसम रीते-रीते
जनम-जनम की तृष्णा बुझ गई
बिरहा के क्षण बीते हाय बिरहा की क्षण बीते
फिर से सजाये, बिखरे अपने सपने बागबाँ
बागबाँ रब है...
ओ ऊँगली थाम के जिन बिरवों को
हमने दिखाई राह
मात-पिता की उनके मन में
तनिक नहीं परवाह
ओ अंसुअन भर नैनों से इनको देखे बागबाँ
बागबाँ रब है...
ओ किसने दुःख की अग्नि डाली
बंजर हो गए खेत
हरी-भरी जीवन बगिया से
उड़ने लगी है रेत हाय
क्या बोया था और क्या काटा सोचे बागबाँ
बागबाँ रब है...
ओ यही सोच के साँसें लिख दी
इन फूलन के नाम
इनकी छैयाँ-छैयाँ बीते
उम्र की ढलती शाम
गुंचे हरदम ही मुस्काये चाहे बागबाँ
हर घड़ी करे रखवाली...
वो सूरज है लायी जिसने
धूप आँगन-आँगन में
क्यों है अकेलेपन का अँधेरा
आज उसी के दामन में
क्या चाहा था और क्या पाया सोचे बागबाँ
बागबाँ रब है...
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