Music By: मदन मोहन
Lyrics By: मजरूह सुल्तानपुरी
Performed By: मो.रफी
तेरी आँखों के सिवा दुनिया में रखा क्या है
ये उठे सुबह चले, ये झुके शाम ढले
मेरा जीना, मेरा मरना
इन्हीं पलकों के तले
पलकों की गलियों में चेहरे बहारों के हँसते हुए
है मेरे ख़्वाबों के क्या-क्या नगर इनमें बसते हुए
ये उठे सुबह...
इनमें मेरे आने वाले ज़माने की तस्वीर है
चाहत के काजल से लिखी हुई मेरी तकदीर है
ये उठे सुबह...
कागा सब तन खाइयो,
ReplyDeleteचुन-चुन खइयो मांस
दो नैना मत खाइयो,
पिया मिलन की आस।
13वीं शताब्दी के पंजाब में बाबा फ़रीद हुए जिनके दोहों को पंजाबी जुबान में बड़ा मरतब हासिल है. सिख धर्म के संस्थापक गुरूनानक उनके अध्यात्मिक मूल्यों से इतने प्रभावित हुए कि गुरूग्रंथ साहब में उनके दोहों की बड़ी संख्या शामिल की।
कवयित्री महादेवी वर्मा लिखती हैं-
नीलम मरकत के संपुट दो
जिनमें बनता जीवन-मोती,
इसमें ढलते सब रंग-रूप
उसकी आभा स्पंदन होती!
जो नभ में विद्युत्-मेघ बना वह रज में अंकुर हो निकला!
मरकत' अर्थात 'धरती' व 'नीलम' अर्थात आकाश'| नीलमणि रत्न समान सीप के संपुट से मोती का जन्म होता है| चक्षुओं में मोती सदृश बादल के द्रवण से धरती पर जीवन का अंकुरण होता है।
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ की पहली किताब 'नक्शे फ़रयादी' में एक नज़्म है, 'मुझ से पहली-सी मोहब्बत मेरे महबूब न माँग...' यह नज़्म जब किताब से निकल कर नूरजहाँ की आवाज़ में जगमगाई तो इसने बेपनाह शोहरत पाई.फ़ैज़ साहब पंजाबी थे. जिन आँखों के हुस्न से उन्होंने अपनी नज़्म को सजाया था, वो आँखें लंदन की थी. उस खूबसूरत आँखों वाली का नाम था-एलिस कैथरीन जार्ज जो बाद में बेगम फ़ैज़ बनकर ऐलिस फ़ैज़ हो गईं.
इन्हीं आँखों पर फ़ैज़ ने लिखा है
यह धूप किनारा, शाम ढले
मिलते हैं दोनों वक़्त जहाँ
जब तेरी समंदर आँखों में
इस शाम का सूरज डूबेगा...
..और राही अपनी राह लेगा.इसमें एक पंक्ति है- 'तेरी आँखों के सिवा दुनिया में रखा क्या है.'
इस पंक्ति में आँखों की तारीफ़ ने फ़िल्म चिराग के निर्माता को वह आँखें याद दिला दीं जो उसने अपनी जवानी में कभी देखी थी और जिन्हें वह अब तक भूल नहीं पाया था.
निर्माता की जिद पर मजरूह ने इस पंक्ति के लिए फ़ैज़ से इजाज़त मांगकर यह मुखड़ा लिखा.
तेरी आँखों के सिवा दुनिया में रखा क्या है
ये उठे सुबह चले, ये झुकें शाम ढले
मेरा मरना, मेरा जीना, इन्हीं पलकों के तले...