Music By: फिडलक्राफ्ट
Lyrics By: फिडलक्राफ्ट
Performed By: फिडलक्राफ्ट
घर में छुपने को ना थी जगह तो
लाँघ के चौखट हम चल दिए थे
खुद जले हम, ख़ाक दिया सब
हमको लगा के हम तो दिए थे
चल घर वापस चलें, जहाँ बंजर है ज़मीं
ना खिड़की है ना दरवाज़े, और छत भी है नहीं
मेरी रखी है एक याद, उस खंडहर में भी
आज चुभती है कल की बात, पैने ख़ंजर सी ही
खुश होती है ज़मीं, मेरे आ जाने से
और देती है एक लाश और अपने ख़ज़ाने से
बीते ऐसे मेरे बीते, जाने कितने साल हैं
घर आए तो देखा कि कुएँ का पानी लाल है
आती है खुशबू घर की बुझी राख से
गिरते हैं कभी क्या मीठे फल, गिरी हुई शाख से
चल घर वापस चलें...
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