Music by: जगजीत सिंह
Lyrics by: नज़ीर बाक़री
Performed by: जगजीत सिंह
अपनी ऑंखों के समंदर में उतर जाने दे
तेरा मुजरिम हूॅं मुझे डूब के मर जाने दे
अपनी ऑंखों के समंदर में
ऐ नए दोस्त मैं समझूॅंगा तुझे भी अपना
पहले माज़ी का कोई ज़ख़्म तो भर जाने दे
अपनी ऑंखों के समंदर में...
आग दुनिया की लगाई हुई बुझ जाएगी
कोई आँसू मेरे दामन पे बिखर जाने दे
अपनी ऑंखों के समंदर में...
ज़ख्म कितने तेरी चाहत से मिले हैं मुझको
सोचता हूॅं के कहूॅं तुझसे, मगर जाने दे
अपनी ऑंखों के समंदर में...
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