Music by: जगजीत सिंह
Lyrics by: अहमद नदीम क़ासमी
Performed by: जगजीत सिंह
किसको क़ातिल मैं कहूॅं, किसको मसीहा समझूॅं
सब यहाॅं दोस्त ही बैठे हैं, किसे क्या समझूॅं
वो भी क्या दिन थे के हर वहम यकीं होता था
अब हक़ीक़त नज़र आए तो उसे क्या समझूॅं
सब यहाॅं दोस्त ही बैठे हैं...
दिल जो टूटा तो कई हाथ दुआ को उठे
ऐसे माहौल में अब किसको पराया समझूॅं
सब यहाॅं दोस्त ही बैठे हैं...
ज़ुल्म ये है के है यकता तेरी बेगाना-रवी
लुत्फ़ ये है के मैं अब तक तुझे अपना समझूॅं
किसको क़ातिल मैं...
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