सावन की रिमझिम में - Sawan Ki Rimjhim Mein (Manna Dey)

Year: 1974
Music By: प्रेम धवन
Lyrics By: अनजान
Performed By: मन्ना डे

खुले गगन पे झुक गई, किसी की सुरमई पलक
किसी की लट बिखर गई, घिरी घटा जहाँ तलक
धुली हवा में घुल गई, किसी की साँस की महक
किसी का प्‍यार आज बूंद-बूंद से गया छलक

सावन की रिमझिम में
थिरक-थिरक नाचे रे
मयूर पंखी रे सपने

कजरारी पलक झुकी रे, घिर गयी घटाएँ
चूड़ियाँ बजाने लगीं रे, सावनी हवाएँ
माथे की बिंदिया, जो घुंघटा से झाँके
चमके बिजुरिया, कहीं झिलमिला के
बूंदों के घुँघरू छनका के रे
सावन की रिमझिम में...

छलक गईं नील गगन से रसभरी फुहारें
महक उठीं तेरे बदन सी भीगती बहारें
रिमझिम फुहारों के रस में नहा के
सिमटी है फिर मेरी बाँहों में आ के
सपनों की दुलहन शरमा के
सावन की रिमझिम में...

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