Movie/Album: हक़ीकत (1964)
Lyrics By: मदन मोहन
Music By: कैफ़ी आज़मी
Performed By: मोहम्मद रफ़ी
मैं ये सोचकर उसके दर से उठा था
के वो रोक लेगी, मना लेगी मुझको
हवाओं में लहराता आता था दामन
के दामन पकड़कर बिठा लेगी मुझको
कदम ऐसे अंदाज़ से उठ रहे थे
के आवाज़ देकर बुला लेगी मुझको
मगर उसने रोका, न उसने मनाया
न दामन ही पकड़ा, न मुझको बिठाया
न आवाज़ ही दी, न वापस बुलाया
मैं आहिस्ता-आहिस्ता बढ़ता ही आया
यहाँ तक के उससे जुदा हो गया मैं
जुदा हो गया मैं...
Lyrics By: मदन मोहन
Music By: कैफ़ी आज़मी
Performed By: मोहम्मद रफ़ी
मैं ये सोचकर उसके दर से उठा था
के वो रोक लेगी, मना लेगी मुझको
हवाओं में लहराता आता था दामन
के दामन पकड़कर बिठा लेगी मुझको
कदम ऐसे अंदाज़ से उठ रहे थे
के आवाज़ देकर बुला लेगी मुझको
मगर उसने रोका, न उसने मनाया
न दामन ही पकड़ा, न मुझको बिठाया
न आवाज़ ही दी, न वापस बुलाया
मैं आहिस्ता-आहिस्ता बढ़ता ही आया
यहाँ तक के उससे जुदा हो गया मैं
जुदा हो गया मैं...
No comments :
Post a Comment
यह वेबसाइट/गाना पसंद है? तो कुछ लिखें...