Movie/Album: पटियाला हाउस (2011)
Music By: शंकर एहसान लॉय
Lyrics By: अन्विका दुत्ता गुप्तन
Performed By: जसबीर जस्सी, महालक्ष्मी अय्यर, हर्द कौर
लौंग दा लश्कारा
ओ बेबी तेरा जान से प्यारा
ओ बेबी ऐंवे चमका दिल साड्डा
के दिख गया प्यार वे पटियाल वी
जबसे दिल हारा
ओ बदला मैं सारा के सारा
ओ बेबी जीवे गबरू दिलदारा
ओ बेबी तेरा यार ये पटियाल वी
पटियाला पैग लगा के नाचूँगा नाचूँगा
पटियाला ढोल बजा के कह दूँगा कह दूँगा
हीरे मेरी ज़ुल्फ़ें तेरी
मेरे हाथों की ये लकीरें बुनती हैं
लौंग दा लश्कारा...
ओये होये पटियाला पैग लगा के कहंदा है, कहंदा है
कलै मिलो तो चुप ये रैंदा है रैंदा है
चन्ना मेरे छड्डो परे
मिश्री सी मीठी गुड़ सी बातें रहने दे
लौंग दा लश्कारा...
बातों से तेरे बातें बनी हैं
आ छुप के फिर से मेरे कानों में कह दे
बातें तो मेरी चुप हो गयी हैं
आ जो भी सुनना है वो आँखों से सुन ले
तू जो कहे उसके अब चर्चे हम करते हैं
तू जो कहे अब से हम सुनते हैं करते हैं
ऐसा कभी सोचा ना था
दिल यूँ ही खो कर ही तक़दीरें मिलती हैं
लौंग दा लश्कारा...
अपने भी पिंड में इक फुलझड़ी थी
वो दिलवाली जुत्ती सूट परांदे
खेतों में जा के छेड़ा था जिसने
उसकी भी यादें कहाँ दिल से हैं जाती
कजरा लगा के वो मैं क्या जी कहती है
पींद मेरे दिल में भी उठती ही रहती है
हीरे मेरी कोठें ते आ
मंजी ते बै जा तेनु रज्ज रज्ज वेखूँ
लौंग दा लश्कारा...
Music By: शंकर एहसान लॉय
Lyrics By: अन्विका दुत्ता गुप्तन
Performed By: जसबीर जस्सी, महालक्ष्मी अय्यर, हर्द कौर
लौंग दा लश्कारा
ओ बेबी तेरा जान से प्यारा
ओ बेबी ऐंवे चमका दिल साड्डा
के दिख गया प्यार वे पटियाल वी
जबसे दिल हारा
ओ बदला मैं सारा के सारा
ओ बेबी जीवे गबरू दिलदारा
ओ बेबी तेरा यार ये पटियाल वी
पटियाला पैग लगा के नाचूँगा नाचूँगा
पटियाला ढोल बजा के कह दूँगा कह दूँगा
हीरे मेरी ज़ुल्फ़ें तेरी
मेरे हाथों की ये लकीरें बुनती हैं
लौंग दा लश्कारा...
ओये होये पटियाला पैग लगा के कहंदा है, कहंदा है
कलै मिलो तो चुप ये रैंदा है रैंदा है
चन्ना मेरे छड्डो परे
मिश्री सी मीठी गुड़ सी बातें रहने दे
लौंग दा लश्कारा...
बातों से तेरे बातें बनी हैं
आ छुप के फिर से मेरे कानों में कह दे
बातें तो मेरी चुप हो गयी हैं
आ जो भी सुनना है वो आँखों से सुन ले
तू जो कहे उसके अब चर्चे हम करते हैं
तू जो कहे अब से हम सुनते हैं करते हैं
ऐसा कभी सोचा ना था
दिल यूँ ही खो कर ही तक़दीरें मिलती हैं
लौंग दा लश्कारा...
अपने भी पिंड में इक फुलझड़ी थी
वो दिलवाली जुत्ती सूट परांदे
खेतों में जा के छेड़ा था जिसने
उसकी भी यादें कहाँ दिल से हैं जाती
कजरा लगा के वो मैं क्या जी कहती है
पींद मेरे दिल में भी उठती ही रहती है
हीरे मेरी कोठें ते आ
मंजी ते बै जा तेनु रज्ज रज्ज वेखूँ
लौंग दा लश्कारा...
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