Music By: रचिता अरोड़ा
Lyrics By: नीरज पांडेय
Performed By: ऐश किंग
बूढा बनकर दिन गिनता था
उखड़ा-उखड़ा सा रहता था
इसकी उम्मीदों से हटकर
कली खिली है
जो उलझी थी वो गुत्थी अब
खुलने वाली है
लगता है उम्मीदों के पाँव भारी हैं
उम्मीदों से बढ़कर किस्से अभी जारी हैं
लगता है उम्मीदों के...
आशा की पुरानी किरनों ने
नया सवेरा पाया
उल्टी दिशा में ढलते-ढलते
सूरज निकल आया
नई धूप आ रही
खुल रही हैं खिड़कियाँ
बंद डाकखाने से
कैसे मिल रही हैं चिट्ठियाँ
जो उलझी थी वो...
सूनी जेबें खाली जीवन
मोड़ नया ये आया
रखकर जो थे भूले
आज वो सिक्का पाया
छिले हुए से घुटने
चुप-चुप हो कर बैठे थे
नहीं अभी अब नहीं कभी
चलना होगा ये कहते थे
आज अचानक दौड़ने की तैयारी है
लगता है उम्मीदों के...
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