Music By: हरिहरन
Lyrics By: कासिम इमाम
Performed By: हरिहरन
ग़लत है मुस्कुराना चाहता है
वो अपना ग़म छुपाना चाहता है
ग़लत है मुस्कुराना...
मेरी ऑंखों को दीवारों में चुन कर
नया चेहरा बनाना चाहता है
वो अपना ग़म...
दीये चौखट पे उम्मीदों के रख कर
हवाओं को बुलाना चाहता है
वो अपना ग़म...
किसी से दुश्मनी रखते नहीं हम
हमें सारा ज़माना चाहता है
वो अपना ग़म...
'इमाम' उसकी ख़ामोशी कह रही है
बिछड़ने का बहाना चाहता है
वो अपना ग़म...
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