Music By: हरिहरन
Lyrics By: मुमताज़ राशिद
Performed By: हरिहरन
घर छोड़ के भी ज़िन्दगी हैरानियों में है
शहरों का शोर दश्त के वीरानियों में है
घर छोड़ के
कितना कहा था उससे कि दामन समेट ले
अब वो भी मेरे साथ परेशानियों में है
शहरों का शोर...
लहरों में ढूँढता हूँ मैं खोए हुए नगीं
चेहरों का अक्स बहते हुए पानियों में है
शहरों का शोर...
डरता हूँ ये भी वक़्त के हाथों से मिट न जाए
हल्की-सी जो चमक अभी पेशानियों में है
शहरों का शोर...
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