Music By: हरिहरन
Lyrics By: इब्राहिम अश्क़
Performed By: हरिहरन
रात भर तन्हा रहा, दिन भर अकेला मैं ही था
शहर की आबादियों में अपने जैसा मैं ही था
रात भर तन्हा रहा...
मैं ही दरिया, मैं ही तूफ़ाॅं, मैं ही था हर मौज भी
मैं ही ख़ुद को पी गया, सदियों से प्यासा मैं ही था
शहर की आबादियों...
किसलिए कतरा के जाता है मुसाफ़िर दम तो ले
आज सूखा पेड़ हूॅं कल तेरा साया मैं ही था
शहर की आबादियों...
कितने जज़्बों की निराली ख़ुशबुऍं थी मेरे पास
कोई इनका चाहने वाला नहीं था मैं ही था
शहर की आबादियों...
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